(19) अंगीकार और क्षमा

1.पाप को अंगीकार करने के संबंध में क्या निर्देश दिया गया है?
इस्त्राएलियों से कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा को विश्वासघात करे, और वह प्राणी दोषी हो, तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरे मूल में पांचवां अंश बढ़ाकर अपने दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो।” (गिनती 5:6,7)।

2.पाप को परमेश्वर से छिपाने का प्रयास करना कितना व्यर्थ है?
“और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा।” (गिनती 32:23)। “तू ने हमारे अधर्म के कामों से अपने सम्मुख, और हमारे छिपे हुए पापों को अपने मुख की ज्योति में रखा है॥” (भजन संहिता 90:8)। “और सृष्टि की कोई वस्तु उस से छिपी नहीं है वरन जिस से हमें काम है, उस की आंखों के साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरदा हैं॥” (इब्रानियों 4:13)।   

3.जो अपने पापों को मान लेते हैं उनसे क्या वादा किया जाता है?
“यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।” (1 यूहन्ना 1:9)।

4.पापों को ढकने और अंगीकार करने में कौन-से भिन्न परिणाम मिलते हैं?
“जो अपने पापों को ढांप लेता है उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उन्हें मान लेता और छोड़ भी देता है उस पर दया की जाएगी।” (नीतिवचन 28:13)।

5.हमें अपने पापों को कबूल करने में कितना पक्का होना चाहिए?
“और जब वह इन बातों में से किसी भी बात में दोषी हो, तब जिस विषय में उसने पाप किया हो वह उसको मान ले,” (लैव्यव्यवस्था 5:5)।

ध्यान दें:- “सच्चा अंगीकार हमेशा एक विशिष्ट चरित्र का होता है, और विशेष पापों को स्वीकार करता है। वे इस तरह के हो सकते हैं कि उन्हें केवल परमेश्वर के सामने लाया जाए; वे गलत हो सकते हैं जिन्हें उन व्यक्तियों के सामने स्वीकार किया जाना चाहिए जिन्होंने उनके माध्यम से चोट का सामना किया है; या वे एक सार्वजनिक चरित्र के हो सकते हैं, और फिर उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए। परन्‍तु सब अंगीकार निश्‍चित और उस सीमा तक हो, जिस में तुम उन पापों को मानो जिनके तुम दोषी हो।” – (“ख्रीस्त की ओर कदम”, पृष्‍ठ 43)।

6.इस्राएल ने एक बार अपने गलत कामों को कितनी पूरी तरह स्वीकार किया था?
“और सब लोगों ने शमूएल से कहा, अपने दासों के निमित्त अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर, कि हम मर न जाएं; क्योंकि हम ने अपने सारे पापों से बढ़कर यह बुराई की है कि राजा मांगा है।” (1 शमूएल 12:19)।

7.जब दाऊद ने अपना पाप अंगीकार किया, तो उसने क्या कहा कि परमेश्वर ने किया?
“जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया॥” (भजन संहिता 32:5)।

8.उसकी क्षमा की अपनी आशा किस पर टिकी हुई थी?
“परमेश्वर, अपनी करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे।” (भजन संहिता 51:1)।  

9.जो क्षमा चाहते हैं, उनके लिए परमेश्वर क्या करने को तैयार है?
“क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करने वाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करूणामय है।” (भजन संहिता 86:5)।

10.परमेश्वर की दया की महानता का माप क्या है?
“जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है।(भजन संहिता 103:11)।

11.जब कोई पश्‍चाताप करता है तो यहोवा उसे पूरी तरह से कैसे क्षमा करता है?
“दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।” (यशायाह 55:7)।

12.पाप क्षमा करने के लिए परमेश्वर की तत्परता का क्या कारण दिया गया है?
“तेरे समान ऐसा परमेश्वर कहां है जो अधर्म को क्षमा करे और अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराध को ढांप दे? वह अपने क्रोध को सदा बनाए नहीं रहता, क्योंकि वह करूणा से प्रीति रखता है।” (मीका 7:18; देखें भजन संहिता 78:38)।

13.परमेश्वर मनुष्यों के प्रति ऐसी दया और सहनशीलता क्यों प्रकट करता है?
“प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9)।

14.मूसा ने इस्राएल के लिए क्या प्रार्थना की?
“अब इन लोगों के अधर्म को अपनी बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से ले कर यहां तक क्षमा करता रहा है वैसे ही अब भी क्षमा कर दे।” (गिनती 14:19)।

15.यहोवा ने तुरन्त क्या उत्तर दिया?
“यहोवा ने कहा, तेरी बिनती के अनुसार मैं क्षमा करता हूं” (गिनती 14:20)।

16.जब उड़ाऊ पुत्र ने दृष्टान्त में पश्‍चाताप किया और घर की ओर मुड़ा, तो उसके पिता ने क्या किया?
“तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा।” (लूका 15:20)।

17.अपने बेटे की वापसी पर पिता ने अपनी खुशी कैसे दिखाई?
22 परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा; फट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ, और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ।
23 और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खांए और आनन्द मनावें।
24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है : खो गया था, अब मिल गया है: और वे आनन्द करने लगे।” (लूका 15:22-24)।

18.जब एक पापी पश्‍चाताप करता है तो स्वर्ग में क्या महसूस होता है?
“मैं तुम से कहता हूं; कि इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के साम्हने आनन्द होता है॥” (लूका 15:10)।

19.हिजकिय्याह ने क्या कहा कि परमेश्वर ने उसके पापों के साथ किया है?
“देख, शान्ति ही के लिये मुझे बड़ी कडुआहट मिली; परन्तु तू ने स्नेह कर के मुझे विनाश के गड़हे से निकाला है, क्योंकि मेरे सब पापों को तू ने अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया है।” (यशायाह 38:17)।

20.परमेश्वर पाप को हम से पूरी तरह से कैसे अलग करना चाहता है?
“वह फिर हम पर दया करेगा, और हमारे अधर्म के कामों को लताड़ डालेगा। तू उनके सब पापों को गहिरे समुद्र में डाल देगा।” (मीका 7:19)। “उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उसने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है।” (भजन संहिता 103:12)।

21.यूहन्‍ना के प्रचार के प्रति लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?
तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस पास के सारे देश के लोग उसके पास निकल आए। और अपने अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया।” (मत्ती 3:5,6)।

22.इफिसुस के कुछ विश्वासियों ने अपने पापों के अंगीकार की ईमानदारी की गवाही कैसे दी?
18 और जिन्हों ने विश्वास किया था, उन में से बहुतेरों ने आकर अपने अपने कामों को मान लिया और प्रगट किया। 19 और जादू करने वालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पोथियां इकट्ठी करके सब के साम्हने जला दीं; और जब उन का दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार रूपये की निकलीं।” (प्रेरितों के काम 19:18,19)।

23.पश्चाताप और क्षमा किसके द्वारा दी जाती है?
30 हमारे बाप दादों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटका कर मार डाला था। 31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारक ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च कर दिया, कि वह इस्त्राएलियों को मन फिराव की शक्ति और पापों की क्षमा प्रदान करे।” (प्रेरितों के काम 5:30,31)।

24.एकमात्र अक्षम्य पाप क्या है?
31 इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। 32 जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र-आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न पर लोक में क्षमा किया जाएगा।” (मत्ती 12:31,32)।

ध्यान दें:- चूंकि पवित्र आत्मा वह प्रतिनिधि है जो पाप के लिए दोषी ठहराता है, और वचन के माध्यम से क्षमा का प्रस्ताव लाता है, आत्मा के कार्य को अस्वीकार करना क्षमा का इनकार है। दूसरे शब्दों में, एकमात्र अक्षम्य पाप वह पाप है जो क्षमा करने से इंकार करता है।

25.मसीह ने हमें किस आधार पर क्षमा माँगना सिखाया है?
“और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।” (मत्ती 6:12)।

26.जिन्हें परमेश्‍वर क्षमा करता है, उन्हें किस भावना को संजोकर रखना चाहिए?
14 इसलिये यदि तुम मनुष्य के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। 15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा न करेगा॥” (मत्ती 6:14,15)।

27.कौन-सा उपदेश इस सच्चाई पर आधारित है कि परमेश्वर ने हमें क्षमा कर दिया है?
“और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो॥” (इफिसियों 4:32)।

28.जिसके पाप क्षमा हुए हैं, वह किस दशा में है?
“क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ाँपा गया हो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो॥” (भजन संहिता 32:1,2)।