(153) दरिद्र, और उनके प्रति हमारा कर्तव्य

दरिद्र, और उनके प्रति हमारा कर्तव्य

1. गरीबों के प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण क्या है?
क्योंकि वह दोहाई देने वाले दरिद्र को, और दु:खी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा” (भजन संहिता 72:12) ।

2. किस उद्देश्य के लिए मसीह ने कहा कि परमेश्वर ने उनका अभिषेक किया था?
“ कि प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उस ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है, कि बन्धुओं को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं।” (लूका 4:18)।

3. उसने कब कहा कि हम गरीबों की सेवा कर सकते हैं?
कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं: और तुम जब चाहो तब उन से भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूंगा।” (मरकुस 14:7)।

4. गरीबों के प्रति हमारे कर्तव्य के बारे में पौलुस ने क्या कहा?
“ मैं ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है “ (प्रेरितों के काम 20:35) ।

5. जो लोग ग़रीबों को समझते हैं उनसे क्या वादे किए जाते हैं?
“क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा।  यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़।  जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा “ (भजन संहिता 41:1-3)।

6. यहोवा गरीबों पर की गई करूणा को कैसे देखता है?
जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा “ (नीतिवचन 19:17)। “क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो” (इब्रानियों 6:10)।

7. जो लोग ग़रीबों की ओर कान नहीं फेरते, उनका क्या अंजाम होता है?
“ जो कंगाल की दोहाई पर कान न दे, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी” (नीतिवचन 21:13)।

8. हमें किन वर्गों की मदद करने के लिए ख़ास तौर से नियुक्‍त किया गया है?
“ भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो, उपद्रवी को सुधारो; अनाथ का न्याय चुकाओ, विधवा का मुकद्दमा लड़ो “ (यशायाह 1:17) ।

9. शुद्ध और निर्मल धर्म क्या घोषित किया गया है?
“ हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें “ (याकूब 1:27)।

10. परमेश्वर को किस प्रकार का उपवास सर्वाधिक स्वीकार्य है?
“जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना ? क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना? “(यशायाह 58:6,7) ।

11. जो यह काम करते हैं उनसे क्या वादा किया जाता है?
“तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं। यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे, उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दु:खियों को सन्तुष्ट करे, तब अन्धियारे में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा। और यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और काल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियों को हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता “ (पद 9-11)।

12. कुलपिता अय्यूब गरीबों के साथ कैसा व्यवहार करता था?
“ दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था, और जो मेरी पहिचान का न था उसके मुक़द्दमे का हाल मैं पूछताछ कर के जान लेता था “ (अय्यूब 29:16) ।

13. मसीह ने धनी युवक से क्या करने को कहा?
“यीशु ने उस से कहा, यदि तू सिद्ध होना चाहता है; तो जा, अपना माल बेचकर कंगालों को दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले “ (मत्ती 19:21) ।

टिप्पणी:- मत्ती 25:31-45 से हम सीखते हैं कि मसीह स्वयं को जरूरतमंद, पीड़ित मानवता के रूप में पहचानता है; और उन्हें दिखाई गई किसी भी उपेक्षा को वह अपने लिए किया हुआ मानता है।