1.आकाश और पृथ्वी किसके द्वारा बनाए गए?
“आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” (उत्पति 1:1)।
2.परमेश्वर ने किसके द्वारा सब कुछ बनाया?
“क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं।” (कुलुसियों 1:16)। “सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।” (यूहन्ना 1:3)।
3.आकाश क्या प्रकट करता है?
“आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।” (भजन संहिता 19:1)।
4.पृथ्वी को बनाने में परमेश्वर का उद्देश्य क्या था?
“क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है।” (यशायाह 45:18)।
5.मनुष्य किसके स्वरूप में बनाया गया था?
“तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।” (उत्पति 1:27)।
6.शुरुआत में परमेश्वर ने मनुष्य के लिए कौन सा घर बनाया?
“और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया। और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए……….. तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को ले कर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे।” (उत्पति 2:8-15)।
7.बनाई गई चीज़ों से क्या महसूस किया जा सकता है?
“क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।” (रोमियों 1:20)।
8.सृष्टि किसकी कारीगरी है?
“क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया॥” (इफिसियों 2:10)।
9.सिरजनहार की असफल न होने वाली शक्ति के बारे में क्या आश्वासन दिया गया है?
“क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सिरजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।” (यशायाह 40:28)।
10.वह थके हुए को बल देने के संबंध में कौन-सा उत्साहजनक कथन आता है?
“वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।” (यशायाह 40:29)।
11.दु:ख उठानेवालों ने किसके प्रति अपने प्राण देने को कहा?
“इसलिये जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार दुख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें॥” (1 पतरस 4:19)।
12.स्वर्गदूत की शपथ को किस बात ने विशेष बल दिया?
“और जिस स्वर्गदूत को मैं ने समुद्र और पृथ्वी पर खड़े देख था; उस ने अपना दाहिना हाथ स्वर्ग की ओर उठाया। और जो युगानुयुग जीवता रहेगा, और जिस ने सवर्ग को और जो कुछ उस में है, और पृथ्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उस में है सृजा उसी की शपथ खा कर कहा, अब तो और देर न होगी। वरन सातवें स्वर्गदूत के शब्द देने के दिनों में जब वह तुरही फूंकने पर होगा, तो परमेश्वर का गुप्त मनोरथ उस सुसमाचार के अनुसार जो उस ने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया पूरा होगा।” (प्रकाशितवाक्य 10:5-7)।
13.शास्त्रों में सिरजनहार और झूठे देवताओं के बीच क्या फर्क है?
“तुम उन से यह कहना, ये देवता जिन्होंने आकाश और पृथ्वी को नहीं बनाया वे पृथ्वी के ऊपर से और आकाश के नीचे से नष्ट हो जाएंगे।. . . परन्तु याकूब का निज भाग उनके समान नहीं है, क्योंकि वह तो सब का सृजनहार है, और इस्राएल उसके निज भाग का गोत्र है; सेनाओं का यहोवा उसका नाम है।” (यिर्मयाह 10:11,16)।
14.हमारी उपासना किसके लिए उचित है?
“आओ हम झुक कर दण्डवत करें, और अपने कर्ता यहोवा के साम्हने घुटने टेकें!” (भजन संहिता 95:6)।
15.इस सृष्टि पर लगे श्राप को ध्यान में रखते हुए, परमेश्वर ने क्या वादा किया है?
“क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करने पर हूं, और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।” (यशायाह 65:17)।
16.मनुष्य के भाईचारे का सही आधार क्या है?
“क्या हम सभों का एक ही पिता नहीं? क्या एक ही परमेश्वर ने हम को उत्पन्न नहीं किया? हम क्यों एक दूसरे का विश्वासघात कर के अपने पूर्वजों की वाचा को तोड़ देते हैं?” (मलाकी 2:10)।
हे अनन्तकारी! जिसकी उपस्थिति उज्ज्वल है
सभी स्थान घेरती हैं, सभी गति का दिशानिर्देशक;
समय की सभी विनाशकारी गति के माध्यम से अपरिवर्तित!
केवल आप ही परमेश्वर हैं – इसके अलावा कोई परमेश्वर नहीं है!
सभी प्राणियों से ऊपर होने के नाते! पराक्रमी,
जिसे कोई समझ नहीं सकता और कोई खोज नहीं सकता;
जो अपने अस्तित्व को अकेले ही भरते हैं,
सभी को गले लगाना, समर्थन करना, शासन करना;
जिसे हम परमेश्वर कहते हैं, और अब और नहीं जानते
तू ने आदिकालीन शून्यता से बनाया है
पहले अराजकता, फिर अस्तित्व; परमेश्वर, आप पर
अनंत काल की नींव है; सब कुछ
आपसे निकले, ज्योति, आनंद, समरसता की,
एकमात्र मूल, – सारा जीवन, सारा सौंदर्य तेरा;
तेरे वचन ने सब बनाया, और तू ही उत्पन्न करता है;
तेरा वैभव सारे स्थान को ईश्वरीय किरणों से भर देता है;
तू कला और वीर और हो जाएगा! यशस्वी! महान!
ज्योति देने वाली, जीवनदायिनी शक्ति!
डेरझाविन।