(164) स्वार्थीपन

स्वार्थीपन

1. कौन-सी बड़ी आज्ञा स्वार्थ को दूर करती है?
“कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।“ (मत्ती 22:39)।

2. दसवीं आज्ञा किस पाप की मनाही करती है?
“तू लालच नहीं करेगा।” (निर्गमन 20:17)।

3. कौन-से पाप अन्तिम दिनों की विशेषता हैं?
“क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र।“ (2 तीमुथियुस 3:2)।

4. स्वार्थी बनने का यह पाप कितना प्रचलित है?
“क्योंकि सब अपने स्वार्थ की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की।” (फिलिप्पियों 2:21)।

5. परोपकार क्या नहीं करता ?
प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।” ( 1 कुरिन्थियों 13:4,5)।

6. स्वार्थ के मामले में हमें कैसे सलाह दी जाती है?
“कोई मनुष्य अपनों को न ढूंढ़े।” (1कुरिन्थियों 10:24)।  “हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।  (फिलिप्पियों 2:4 ) ।”जैसा मैं सब बातों में सब को प्रसन्न रखता हूं, और अपना नहीं, परन्तु बहुतों का लाभ ढूंढ़ता हूं, कि वे उद्धार पाएं।” (1 कुरिन्थियों10:33) । “हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई और उन्नति के निमित्त प्रसन्न करे।”  (रोमियो 15:2)।

7. मसीह ने निःस्वार्थता की कौन-सी मिसाल छोड़ दी?
“तुम्हारे लिये कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।” (2 कुरिन्थियों 8:9)। “यहाँ तक कि मसीह ने भी स्वयं को प्रसन्न नहीं किया।”( रोमियो 15:3; 1 यूहन्ना 3:17 देखें)।