(161) अतिथि-सत्कार

अतिथि-सत्कार

1. पहुनाई के विषय में शास्त्र क्या कहते हैं?
बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो। जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (1 पतरस 4:9,10 )। “ भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।  आशा मे आनन्दित रहो; क्लेश मे स्थिर रहो; प्रार्थना मे नित्य लगे रहो। पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने मे लगे रहो” (रोमियो 12:10-13) ।

2. क्या शुभकामनाओं की मात्र अभिव्यक्ति पर्याप्त है?
यदि कोई भाई या बहिन नगें उघाड़े हों, और उन्हें प्रति दिन भोजन की घटी हो। और तुम में से कोई उन से कहे, कुशल से जाओ, तुम गरम रहो और तृप्त रहो; पर जो वस्तुएं देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे, तो क्या लाभ? “ (याकूब 2:15-16) ।

3. हमें पहुनाई कब करनी चाहिए?
इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ “ (गलातियों 6:10) ।

4. परदेसियों का मनोरंजन करने के लिए क्या प्रोत्साहन दिया जाता है?
“पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्वर्गदूतों की पहुनाई की है “ (इब्रानियों 13:2, उत्पत्ति 18:1-8 , 19:1-3) ।

5. ऐसे काम करनेवालों को कौन-सी आशीषें देने का वादा किया जाता है?
उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी” (नीतिवचन 11:25; देखें 1 राजा 17:8-16) ।